कैदी - मुंशी प्रेमचंद | Kaidi by Munshi Premchand
मानसरोवर भाग - 2
मानसरोवर, मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई कहानियों का संकलन है। उनके निधनोपरांत मानसरोवर नाम से 8 खण्डों में प्रकाशित इस संकलन में उनकी दो सौ से भी अधिक कहानियों को शामिल किया गया है।
कैदी, मानसरोवर भाग - 2 की कहानी है। यहाँ पढ़े: मानसरोवर भाग - 2 की अन्य कहानियाँ
1
चौदह साल तक निरन्तर मानसिक वेदना और शारीरिक यातना भोगने के बाद आइवन औखोटस्क जेल से निकला; पर उस पक्षी की भाँति नहीं, जो शिकारी के पिंजरे से पंखहीन होकर निकला हो बल्कि उस सिंह की भाँति, जिसे कटघरे की दीवारों ने और भी भयंकर तथा और भी रक्त-लोलुप बना दिया हो। उसके अन्तस्तल में एक द्रव ज्वाला उमड़ रही थी, जिसने अपने ताप से उसके बलिष्ट शरीर, सुडौल अंग-प्रत्यंग और लहराती हुई अभिलाषाओं को झुलस डाला था और आज उसके अस्तित्व का एक-एक अणु एक-एक चिनगारी बना हुआ था- क्षुधित, चंचल और विद्रोहमय।
जेलर ने उसे तौला। प्रवेश के समय दो मन तीस सेर था, आज केवल एक मन पाँच सेर।
जेलर ने सहानुभूति दिखाकर कहा- तुम बहुत दुर्बल हो गये हो, आइवन। अगर जरा भी कृपथ्य हुआ, तो बुरा होगा।
आइवन ने अपने हड्डियों के ढाँचे को विजय-भाव से देखा और अपने अन्दर एक अग्निमय प्रवाह का अनुभव करता हुआ बोला- कौन कहता है कि मैं दुर्बल हो गया हूँ?
तुम खुद देख रहे होगे।’
‘दिल का आग जब तक नहीं बुझेगी, आइवन नहीं मरेगा, मि. जेलर, सौ वर्ष तक नहीं, विश्वास रखिए।’
आइवन इसी प्रकार की बहकी-बहकी बाते किया करता था, इसलिए जेलर ने ज्यादा परवाह न की। सब उसे अर्द्ध-विक्षिप्त समझते थे। कुछ लिखा-पढ़ी हो जाने के बाद उसके कपड़े और पुस्तकें मँगवायी गयी; पर वे सारे सूट अब उसे उतारे हुए से लगते थे। कोटों को जेबों में कई नोट निकले, कई नकद रुबेल। उसने सब कुछ वहीं जेल के वार्डन और निम्न कर्मचारियों को दे दिया मानो उसे कोई राज्य मिल गया हो।
जेलर ने कहा- यह नहीं हो सकता, आइवन! तुम सरकारी आदमियों को रिश्वत नहीं दे सकते।
आइवन साधु-भाव हँसा- यह रिश्वत नहीं हैं, मि. जेलर! इन्हें रिश्वत देकर अब मुझे क्या लेना-देना हैं? अब ये अप्रसन्न होकर मेरा क्या बिगाड़ लेंगे और प्रसन्न होकर मुझे क्या देंगे? यह उन कृपाओं का धन्यवाद हैं जिनके बिना चौदह साल तो क्या, मेरा यहाँ चौदह घंटे रहना असह्य हो जाता।
जब वह जेल के फाटक से निकला, तो जेलर और सारे अन्य कर्मचारी उसके पीछे उसे मोटर तक पहुँचाने चले।
पन्द्रह साल पहले आइवन मास्को के सम्पन्न और सम्भ्रान्त कुल का दीपक था।
उसने विद्यालय में ऊँची शिक्षा पायी थी, खेल में अभ्यस्त था, निर्भीक था, उदार और सहृदय था। दिल आईने की भाँति निर्मल, शील का पुतला, दर्बलों की रक्षा के लिए जान पर खेलनेवाला, जिसकी हिम्मत संकट के सामने नंगी तलवार हो जाती थी। उसके साथ हेलेन नाम की एक युवती पढ़ती थी, जिस पर विद्यालय के सारे युवक जान देते थे। वह जितनी ही रूपवती थी, उतनी ही तेज थी, बड़ी कल्पनाशील; पर मनोभावों को ताले में बन्द रखनेवाली। आइवन में क्या देखकर वह उसकी ओर आकर्षित हो गयी, यह कहना कठिन हैं। दोनो में लेशमात्र भी सामंजस्य न था। आइवन सैर और शराब का प्रेमी था, हेलेन कविता एवं संगीत और नृत्य पर जान देती थी। आइवन की निगाह में रुपये इसलिए थे कि दोनो हाथो से उड़ाये जाएँ, हेलेन अत्यन्त कृपण। आइवन को लेक्चर-हॉल कारागार-सा लगता था; हेलेन इस सागर की मछली थी। पर कदाचित् वह विभिन्नता ही उनमें स्वाभाविक आकर्षण बन गयी, जिसने अन्त में विकल प्रेम का रूप लिया। आइवन ने उससे विवाह का प्रस्ताव किया और उसने स्वीकार कर लिया। और दोनों किसी शुभ मुहर्त में पाणिग्रहण करके सौहागरात बिताने के लिए किसी पहाड़ी में जाने के मनसूबे बना रहे थे कि सहसा राजनैतिक संग्राम ने उन्हें अपनी ओर खींच लिया। हेलेन पहले से ही राष्ट्रवादियों की ओर की हुई थी। आइवन भी उसी रंग में रँग उठा । खानदान का रईस था, उसके लिए प्रजा-पक्ष लेना एक महान तपस्या थी; इसलिए जब कभी वह इस संग्राम में हताश हो जाता, तो हेलेन उसकी हिम्मत बँधाती और आइवन उसके साहस और अनुराग से प्रभावित होकर अपनी दुर्बलता पर लज्जित हो जाता।
कैदी - मुंशी प्रेमचंद | Kaidi by Munshi Premchand |
2
इन्हीं दिनों उक्रायेन प्रान्त की सूबेदारी पर रोमनाफ नाम का एक गवर्नर नियुक्त होकर आया- बड़ा ही कट्टर, राष्ट्रवादियों का जानी दुश्मन, दिन में दो-चार विद्रोहियों को जेल भेज लेता, उसे चैन न आता। आते-ही-आते उसने कई सम्पादकों पर राजद्रोह का अभियोग चलाकर उन्हें साइबेरिया भेजवा दिया, कृषको की सभाएँ तोड़ दी, नगर की म्युनिसिपैलिटी तोड़ दी और जब जनता ने रोष प्रकट करने के लिए जलसे किये, तो पुलिस से भीड़ पर गोलियाँ चलवायीं, जिसमें कई बेगुनाहों की जाने गयीं। मार्शल लॉ जारी कर दिया। सारे नगर में हाहाकार मच गया। लोग मारे डर के डरो से न निकलते थे; क्योंकि पुलिस हर एक की तलाशी लेती थी और उसे पीटती थी।
हेलेन ने कठोर मुद्रा से कहा- यह अन्धेर तो अब नहीं देखा जाता, आइवन। इसका कुछ उपाय होना चाहिए।
आइवन ने प्रश्न की आँखों से देखा- उपाय! हम क्या उपाय कर सकते हैं?
हेलेन ने उसकी जड़ता पर खिन्न होकर कहा- तुम कहते हो, हम क्या कर सकते हैं मैं कहती हूँ, हम सब कुछ कर सकते हैं। मैं इन्हीं हाथों से उनका अन्त कर दूँगी।
आइवन ने विस्मय से उसकी ओर देखा- तुम समझती हो, उसे कत्ल करना आसान हैं? वह कभी खुली गाड़ी में नहीं निकलता। उसके आगे-पीछे सशस्त्र सवारों का एक दल हमेंशा रहता हैं। रेलगाड़ी में भी वह रिर्जव डब्बों मे सफर करता हैं। मुझे तो असम्भव सा लगता हैं, हेलेन- बिल्कुल असम्भव।
हेलेन कई मिनट तक चाय बनाती रही। फिर दो प्याले मेज पर रखकर उसने प्याला मुँह से लगाया और धीरे-धीरे पीने लगी। किसी विचार में तन्मय हो रही थी। सहसा उसने प्याला मेज पर रख दिया और बड़ी-बड़ी आँखों में तेज भर कर बोली- यह सब होते हुए भी मैं उसे कत्ल कर सकती हूँ, आइवन! आदमी एक बार अपनी जान पर खेलकर सब कुछ कर सकता हैं। जानते हो, मैं क्या करूँगी? मैं उससे राहो-रस्म पैदा करूँगी, उसका विश्वास प्राप्त करूँगी उसे इस भ्राँति में डालूँगी कि मुझे उससे प्रेम हैं। मनुष्य कितना ही हृदयहीन हो, उसके हृदय के किसी-न-किसी कोने में पराग की भाँति रस छिपा ही रहता हैं। मैं तो समझती हूँ कि रोमनाफ की यह दमन-नीति उसकी अवरुद्ध अभिलाषा की गाँठ हैं और कुछ नहीं। किसी मायावनी के प्रेम में असफल होकर उसके हृदय का रस-स्रोत सूख गया हैं। वहाँ रस का संचार करना होगा और किसी युवती का एक मध शब्द, एक सरल मुसकान भी जादू का काम करेगी। ऐसों को तो वह चुटकियों में अपने पैरों पर गिरा सकती हैं। तुम-जैसे सैलानियों को रिझाना इससे कहीं कठिन हैं। अगर तुम यह स्वीकार करते हो कि मैं रूपहीन नहीं हूँ, तो मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूँ कि मेरा कार्य सफल होगा। बतलाओ मैं रूपवती हूँ या नहीं
उसने तिर्छी आँखों से आइवन को देखा। आइवन इस भाव-विलास पर मुग्ध होकर बोला- तुम यह मुझसे पूछती हो, हेलेन? मैं तो संसार की ….
हेलेन ने उसकी बात काट कर कहा- अगर तुम ऐसा समझते हो, तो तुम मूर्ख हो, आइवन ! इसी नगर में नही, हमारे विद्यालय में ही, मुझसे कहीं रूपवती बालिकाएँ मौजूद हैं। हाँ, तुम इतना कह सकते हो कि तुम कुरूपा नहीं हो। क्या तुम समझते हो, मैं तुम्हें संसार का सबसे रूपवान युवक समझती हूँ? कभी नहीं। मैं ऐसे एक नही सौ नाम गिना सकती हूँ, जो चेहरे-मोहरे में तुमसे बढ़कर हैं, मगर तुममे कोई ऐसी वस्तु हैं, जो तुम्हीं में हैं और वह मुझे और कहीं नजर नहीं आती। तो मेरा कार्यक्रम सुनो। एक महीने तो मुझे उससे मेल करते लगेगा। फिर वह मेरे साथ सैर करने निकलेगा। और तब एक दिन हम और वह दोनों रात को पार्क में जायँगे और तालाब के किनारे बेंच पर बैठेंगे। तुम उसी वक़्त रिवाल्वर लिये आ जाओगे और वहीं पृथ्वी उसके बोझ से हलकी हो जायगी।
जैसा हम पहले कह चुके हैं आइवन एक रईस का लड़का था और क्रांतिमय राजनीति से उसका हार्दिक प्रेम न था। हेलेन के प्रभाव से कुछ मानसिक सहानुभूति अवश्य पैदा हो गयी थी और मानसिक सहानुभूति प्राणी को संकट में नहीं डालती। उसने प्रकट रूप से तो कोई आपत्ति नही की लेकिन कुछ संदिग्ध भाव से बोला- यह तो सोचो हेलेन, इस तरह की हत्या कोई मानुषीय कृति हैं।
हेलेन ने तीखेपन से कहा- जो दूसरों के साथ मानुषीय व्यवहार नहीं करता, उसके साथ हम क्यों मानुषीय व्यवहार करे? क्या यह सूर्य की भाँति प्रकट नहीं हैं कि आज सैकड़ो परिवार इस राक्षस के हाथो से तबाह हो रहे हैं? कौन जानता हैं, इसके हाथ कितने बेगुनाहों के खून से रँगे हुए हैं? ऐसे व्यक्ति के साथ किसी तरह रिआयत करना संगत हैं। तुम न-जाने क्यों इतने ठंडे हो। मैं तो उसके दुष्टाचरण को देखती हूँ तो मेरा रक्त खौलने लगता हैं। मैं सच कहती हूँ, जिस वक़्त उसकी सवारी निकलती हैं. मेरी बोटी-बोटी हिंसा के आवेग से काँपने लगती हैं। अगर मेरे सामने कोई उसकी खाल भी खींच ले, तो मुझे दया न आये। अगर तुममें इतना साहस नहीं हैं, तो कोई हरज नहीं। मैं खुद सब कुछ कर लूँगी। हाँ, देख लेना, मैं कैसे उस कुत्ते को जहन्नुम पहुँचाती हूँ ।
3
हेलेन का मुखमंडल हिंसा के आवेश से लाल हो गया। आइवन ने लज्जित होकर कहा- नहीं-नहीं, यह बात नहीं हैं. हेलेन! मेरा यह आशय न था कि मैं इस काम में तुम्हें सहयोग न दूँगा मुझे आज मालूम हुआ कि तुम्हारी आत्मा देश की दुर्दशा से कितनी विकल हैं; लेकिन मैं फिर यहीं कहूँगा कि यह काम इतना आसान नहीं हैं और हमें बड़ी सावधानी से काम लेना पड़ेगा।
हेलेन ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा- तुम इसकी कुछ चिन्ता न करो, आइवन! संसार में मेरे लिए जो वस्तु सबसे प्यारी हैं, उसे दाँव पर रखते हुए क्या मैं सावधानी से काम न लूँगी? लेकिन तुमसे एक याचना करती हूँ। अगर इस बीच में कोई ऐसा काम करूँ, जो तुम्हे बुरा मालूम हो, तो तुम मुझे क्षमा करोगे न?
आइवन ने विस्मय-भरी आँखों से हेलेन के मुख की ओर देखा। उसका आशय समझ में न आया।
हेलेन डरी, आइवन कोई नयी आपत्ति तो नहीं खड़ी करना चाहता। आश्वासन के लिए अपने मुख को उसके आतुर अक्षरों के समीप ले जाकर बोली- प्रेम का अभिनय करने मुझे वह सब कुछ करना पड़ेगा, जिस पर एकमात्र तुम्हारा ही अधिकार हैं। मै डरती हूँ, कहीं तुम मुझ पर सन्देह न करने लगो।
आइवन ने उसे कर-पाश में लेकर कहा- यह असम्भव हैं हेलेन, विश्वास प्रेम की पहली सीढ़ी हैं।
अंतिम शब्द करते-कहते उसकी आँखे झुक गयी। इन शब्दों में उदारता का जो आदर्श था, वह उस पर पूरा उतरेगा या नहीं, वह यहीं सोचने लगी।
इसके तीन दिन पीछे नाटक का सूत्रपात हुआ। हेलेन अपने ऊपर पुलिस के निराधार संदेह की फरियाद लेकर रोमनाफ से मिली और उसे विश्वास दिलाया कि पुलिस के अधिकारी उससे केवल इसलिए असंतुष्ट है कि वह उनके कलुषित प्रस्तावों को ठुकरा रही हैं। यह सत्य हैं कि विद्यालय में उसकी संगति कुछ उग्र युवकों से ही गयी थी; पर विद्यालय से निकलने के बाद उसका उनसे कोई सम्बन्ध नही हैं । रोमनाफ जितना चतुर था, उससे कही चतुर अपने को समझता था। अपने दस साल के अधिकारी जीवन में उसे किसी रमणी से साबिका न पड़ा था, जिसने उसके ऊपर इतना विश्वास करके अपने को उसकी दया पर छोड़ दिया हो। किसी धन-लोलुप की भाँति सहसा यह धनराशि देखकर उसकी आँखों पर परदा पढ़ गया। अपनी समझ में तो वह हेलेन से उग्र युवकों के विषय में ऐसी बहुत-सी बातो का पता लगाकर फूला न समाया, जो खुफिया पुलिसवालों को बहुत सिर-मारने पर भी ज्ञात न हो सकी थी; पर इन बातों में मिथ्या का कितना मिश्रण हैं, वह न भाँप सका। इस आध घंटे में एक युवती ने एक अनुभवी अफसर को अपने रूप की मदिरा से उन्मत्त कर दिया था।
जब हेलेन चलने लगी, तो रोमनाफ ने कुर्सी से खड़े होकर कहा- मुझे आशा हैं, यह हमारी आखिरी मुलाकात न होगी।
हेलेन ने हाथ बढ़ाकर कहा- हुजूर ने जिस सौजन्य से मेरी विपत्ति-कथा सुनी हैं, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देती हूँ।
‘कल आप तीसरे पहर यहीं चाय पियें।’
रब्त-जब्त बढ़ने लगा। हेलेन आकर रोज की बातें आइवन से कह सुनाती। रोमनाफ वास्तव में जितना बदनाम था, उतरा बुरा नहीं। नहीं, वह बडा रसिक, संगीत और कला का प्रेमी और शील तथा विनय की मूर्ति हैं। इन थोड़े ही दिनों में हेलेन से उसकी घनिष्ठता हो गयी हैं और किसी अज्ञात रीति से नगर में पुलिस का अत्याचार कम होने लगा हैं।
अन्त में निश्चित तिथि आयी। आइवन और हेलेन दिन-भर बैठे-बैठे इसी प्रश्न पर विचार करते रहे। आइवन का मन आज बहुत चंचल हो रहा था। कभी अकारण ही हँसने लगता, कभी अनायास ही रो पड़ता। शंका, प्रतीक्षा और किसी अज्ञात चिंता ने उसके मनो-सागर को इतना अशान्त कर दिया था कि उसमें भावों को नौकाएँ डगमगा रही थीं- न मार्ग का पता था न दिशा का। हेलेन भी आज बहुत चिन्तित और गम्भीर थी। आज के लिए उसने पहले ही से सजीले वस्त्र बनवा रखे थे। रूप को अलंकृत करने के न-जाने किन-किन विधानों कप प्रयोग कर रही थी; पर इसमें किसी योद्धा का उत्साह नहीं, कायर का कम्पन था।
सहसा आइवन ने आँखों में आँसू भरकर कहा- तुम आज इतनी मायाविनी हो गयी हो हेलेन, कि मुझे न-जाने क्यों तुमसे भय हो रहा हैं!
हेलेन मुसकायी। उस मुसकान में करूणा भरी हुई थी- मनुष्य को कभी-कभी कितने ही अप्रिय कर्त्तव्यों का पालन करना पड़ता हैं, आइवन, आज मैं सुधा से विष का काम लेने जा रही हूँ। अलंकार का ऐसा दुरुपयोग तुमने कहीं और देखा हैं?
आइवन उड़े हुए मन से बोला- इसी को राष्ट्र-जीवन कहते हैं।
‘यह राष्ट्र-जीवन हैं- यह नरक हैं।’
‘मगर संसार में अभी कुछ दिन और इसकी जरूरत रहेगी।’
यह अवस्था जितनी जल्द बदल जाय उतना ही अच्छा। ’
4
पाँसा पलट चुका था, आइवन ने गर्म होकर कहा- अत्याचारियों को संसार में फलने-फूलने दिया जाय, जिसमें एक दिन इनके काँटों के मारे पृथ्वी पर कहीं पाँव रखने की जगह न रहे।
हेलेन ने जवाब न दिया; पर उसके मन में जो अवसाद उत्पन्न हो गया था, वह उसके मुख पर झलक रहा था। राष्ट्र उसकी दृष्टि में सर्वोपरि था, उसके सामने व्यक्ति का कोई मूल्य न था। अगर इस समय उसका मन किसी कारण से दुर्बल भी हो रहा था, तो उसे खोल देने का उसमें साहस न था।
दोनो गले मिलकर विदा हुए। कौन जाने, यह अन्तिम दर्शन हो?
दोनों के दिल भारी थे और आँखें सजल।
आइवन ने उत्साह के साथ कहा- मैं ठीक समय पर आऊँगा।
हेलेन ने कोई जवाब न दिया।
आइवन ने फिर सानुरोध कहा- खुदा से मेरे लिए दुआ करना, हेलेन!
हेलेन ने जैसे रोते हुए कहा- मुझे खुदा पर भरोसा नहीं हैं।
‘मुझे तो हैं।’
‘कब से? ’
‘जब से मौत मेरी आँखों के सामने खड़ी हो गयी।’
वह वेग के साथ चला गया। सन्ध्या हो गयी और दो घंटे के बाद ही उस कठिन परीक्षा का समय आ जायगा, जिससे उसके प्राण काँप रहे थे। वह कहीं एकान्त में बैठकर सोचना चाहता था। आज उसे ज्ञात हो रहा था कि वह स्वाधीन नहीं हैं। बड़ी मोटी जंजीर उसके एक-एक अंग को जकड़े हुए थी। इन्हें वह कैसे तोड़े?
दस बज गये थे। हेलेन और रौमनाफ पार्क के एक कुंज में बैठे हुए थे। तेज बर्फीली हवा चल रही थी। चाँद किसी क्षीण आशा की भाँति बादलों में छिपा हुआ था।
हेलेन ने इधर-उधर सशंक नेत्रों से देखकर कहा- अब तो देर हो गयी, यहाँ से चलना चाहिए।
रोमनाफ ने बेंच पर पाँव फैलाते हुए कहा- अभी तो ऐसी देर नहीं हुई हैं, हेलेन! कह नहीं सकता, जीवन के यह क्षण स्वप्न हैं या सत्य; लेकिन सत्य भी हैं तो स्वप्न से अधिक मधुर और स्वप्न भी हैं तो सत्य से अधिक उज्ज्वल।
हेलेन बेचैन होकर उठी और रोमनाफ का हाथ पकड़कर बोली- मेरा जी आज कुछ चंचल हो रहा हैं। सिर में चक्कर आ रहा हैं। चलो मुझे मेरे घर पहुँचा दो।
रोमनाफ ने उसका हाथ पकड़कर अपनी बगल में बैठाते हुए कहा- लेकिन मैने मोटर तो ग्यारह बजे बुलायी हैं।
हेलेन के मुँह से चीख निकल गयी- ग्यारह बजे!
‘हाँ. अब ग्यारह बजा चाहते हैं। आओ तब तक और कुछ बातें हों। रात तो काली बला-सी मालूम होती हैं। जितनी ही देर उसे दूर रख सकूँ उतना ही अच्छा। मैं तो समझता हूँ, उस दिन तुम मेरे सौभाग्य की देवी बनकर आयी थी हेलेन, नहीं तो अब तक मैने न जाने क्या-क्या अत्याचार किये होते। उस उदार नीति ने वातावरण में जो शुभ परिवर्तन कर दिया, उस पर मुझे स्वयं आश्चर्य हो रहा हैं। महीनों के दमन में जो कुछ न कर पाया था, वह दिनों के आश्वासन ने पूरा कर दिखाया। और इसके लिए मैं तुम्हारा ऋणी हूँ, हेलेन, केवल तुम्हारा। पर खेद यही हैं कि हमारी सरकार दवा करना नहीं जानती, केवल मारना जानती हैं। जार के मंत्रियों में अभी से मेरे विषय में सन्देह होने लगा हैं, और मुझे यहाँ से हटाने का प्रस्ताव हो रहा हैं।
सहसा टार्च का चकाचौध पैदा करनेवाला प्रकाश बिजली की भाँति उठा और रिवाल्वर छूटने की आवाज आयी। उसी वक़्त रोमनाफ ने उछलकर आइवन को पकड़ लिया और चिल्लाया- पकड़ो, पकड़ो! खून हेलेन, तुम यहाँ से भागो।
पार्क में कई संतरी थे। चारों ओर से दौड़ पड़े। आइवन घिर गया। एक क्षण में न-जाने कहाँ से टाउन-पुलिस, सशस्त्र पुलिस, गुप्त पुलिस और सवार पुलिस के जत्थे-के-जत्थे आ पहुँचे। आइवन गिरफ्तार हो गया।
रोमनाफ ने हेलेन से हाथ मिलाकर सन्देह के स्वर मे कहा- यह आइवन तो वही युवक है, तो तुम्हारे विद्यालय में था।
हेलेन ने क्षुब्ध होकर कहा- हाँ, हैं। लेकिन मुझे इसका जरा भी अनुमान न था कि वह क्रांतिकारी हो गया हैं।
‘गोली मेरे सिर पर से सन्-सन् करती हुई निकल गयी।’
‘या ईश्वर!’
‘मैने दूसरा फायर करने का अवसर ही न दिया। मुझे इस युवक की दशा पर दु:ख हो रहा हैं, हेलेन! ये अभागे समझते हैं कि इन हत्याओं से वे देश का उद्धार कर लेंगे। अगर मैं मर ही जाता तो क्या मेरी जगह, कोई मुझसे भी ज्यादा कठोर मनुष्य न आ जाता? लेकिन मुझे जरा भी क्रोध, दु:ख या भय नहीं हैं हेलेन, तुम बिल्कुल चिन्ता न करना। चलो, मैं तुम्हें पहुँचा दूँ’
रास्ते भर रोमनाफ इस आघात से बच जाने पर अपने को बधाई और ईश्वर को धन्यवाद देता रहा और हेलेन विचारों में मग्न बैठी रही।
दूसरे दिन मजिस्ट्रेट के इलजास में अभियोग चला और हेलेन सरकारी गवाह थी। आइवन को मालूम हुआ कि दुनिया अंधेरी हो गयी हैं और वह उसकी अथाह गहराई में घँसता चला जा रहा हैं।
5
चौदह साल के बाद।
आइवन रेलगाड़ी से उतरकर हेलेन के पास जा रहा हैं। उसे घरवालों की सुध नहीं हैं। माता और पिता उसके वियो में मरणासन्न हो रहे हैं, इसकी उसे परवाह नही हैं। वह अपने चौदह साल के पाले हुए हिंसा-भाव से उन्मत्त, हेलेन के पास जा रहा हैं, पर उसकी हिंसा में रक्त की प्यास नहीं हैं, केवल गहरी दाहक दुर्भावना हैं। इस चौदह सालों में उसने जो यातनाएँ झेली हैं, उनके दो-चार वाक्यों में मानो सत्त निकालकर, विष के समान हेलेन की धमनियों में भरकर, उसे तड़पते हुए देखकर, वह अपनी आँखों को तृप्त करना चाहता हैं। और वह वाक्य क्या हैं?- ‘हेलेन, तुमने मेरे साथ जो दगा की हैं, वह शायद त्रिया-चरित के इतिहास में भी अद्वितीय हैं। मैने अपना सर्वस्व तुम्हारे चरणों पर अर्पण कर दिया। मैं केवल तुम्हारे इशारों का गुलाम था। तुमने ही मुझे रोमनाफ की हत्या के लिए प्रेरित किया और तुमने ही मेरे विरुद्ध साक्षी दी, केवल अपनी कुटिल काम-लिप्सा को पूरा करने के लिए! मेरे विरुद्ध कोई दूसरा प्रणाम न था। रोमनाफ और उसकी सादी पुलिस भी झूठी शहादतों से मुझे परास्त न कर सकती थी; मगर तुमने केवल अपनी वासना को तृप्त करने के लिए, केवल रोमनाफ के विषाक्त आलिंगन का आनन्द उठाने के लिए मेरे साथ यह विश्वासघात किया। पर आँखें खोलकर देखो कि वही आइवन, जिसे तुमने पैर के नीचे कुचला था, आज तुम्हारी उन सारी मक्कारियों का पर्दा खोलने के लिए तुम्हारे सामने खड़ा हैं। तुमने राष्ट्र की सेवा का बीड़ा उठाया था। तुम अपने को राष्ट्र की वेदी पर होम कर देना चाहती थी; किन्तु कुत्सित कामनाओं के पहले ही प्रलोभन में तुम अपने सारे बहुरूप को तिलांजलि देकर भोग-लालसा की गुलामी करने पर उतर गयीं। अधिकार और समृध्दि के पहले ही टुकड़े पर तुम दुम हिलाती हुई टूट पड़ी, धिक्कार हैं तुम्हारी इस भोग-लिप्सा को, तुम्हारे इस कुत्सित जीवन को?’
सन्ध्या-काल था। पश्चिम के क्षितिज पर दिन का चिता जलकर ठंडी हो रही थी और रोमनाफ के विशाल भवन में हेलेन की अर्थी को ले चलने की तैयारियाँ हो रही थी। नगर के नेता जमा थे और रोमनाफ अपने शोक- कंपित हाथों से अर्थी को पुष्पहार से सजा रहा था एवं उन्हें अपने आत्म-जल से शीतल कर रहा था। उसी वक़्त आइवन उन्मत्त वेश में, दुर्बल, झुका हुआ, सिर के बाल बढ़ायें, कंकाल- सा आकर खड़ा हो गया। किसी ने उसकी ओर ध्यान न दिया! समझे, कोई भिक्षुक होगा जो ऐसे अवसरों पर दान के लोभ पर आ जाया करते हैं।
जब नगर के विशप ने अन्तिम संस्कार समाप्त किया और मरियम की बेटियाँ नये जीवन के स्वागत का गीत गा चुकीं, तो आइवन ने अर्थी के पास जाकर, आवेश से काँपते हुए स्वर में कहा- यह वह दुष्टा है, जिसे सारी दुनिया के पवित्र आत्माओं की शुभ कामनाएँ भी नरक की यातना से नहीं बचा सकतीं। वह इस योग्य थी कि उसकी लाश….
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कई आदमियों ने दौड़कर उसे पकड़ लिया और धक्के देते हुए फाटक की ओर ले चले। उसी वक़्त रोमनाफ ने आकर उसके कन्धे पर हाथ रख दिया और उसे अलग ले जाकर पूछा- दोस्त, क्या तुम्हारा नाम क्लॉडियस आइवन हैं? हाँ, तुम वही हो. मुझे तुम्हारी सूरत याद आ गयी। मुझे सब कुछ मालूम हैं, रत्ती-रत्ती मालूम हैं। हेलेन ने मुझसे कोई बात नहीं छिपायी। अब वह इस संसार में नहीं हैं, मैं झूठ बोलकर उसकी कोई सेवा नहीं कर सकता। तुम उस पर कठोर शब्दों का प्रहार करो या कठोर आघातों का, वह समान रूप से शान्त रहेगी; लेकिन अन्त समय तक वह तुम्हारी। याद करती रही। उस प्रसंग की स्मृति उसे सदैव रुलाती रहती थी। उसके जीवन की यह सबसे बड़ी कामना थी कि वह तुम्हारे सामने घुटने टेक कर क्षमा की याचना करे, मरते-मरते उसने यह वसीयत की, कि जिस तरह भी हो सके उसकी यह विनय तुम तक पहुचाऊँ कि वह तुम्हारी अपराधिनी हैं और तुमसे क्षमा चाहती हैं। क्या तुम समझते हो, जब वह तुम्हारे सामने आँखों में आँसू भरे आती, तो तुम्हारे हृदय पत्थर होने पर भी न पिघल जाता? क्या इस समय भी तुम्हें दीन याचना की प्रतिमा-सी खडी नही दीखती? चलकर उसका मुसकराता हुआ चेहरा देखो। मोशियो आइलन, तुम्हारा मन अब भी उसका चुम्बन लेने के लिए विकल हो जायगा। मुझे जरा भी ईर्ष्या न होगी। उस फूलों की सेज पर लेटी हुई वह ऐसी लग रही हैं, मानो फूलों की रानी हो। जीवन में उसकी एक ही अभिलाषा अपूर्ण रह गयी आइवन, वह तुम्हारी क्षमा हैं। प्रेमी हृद बड़ा उदार होता हैं आइवन, वह क्षमा और दया का सागर होता हैं। ईर्ष्या और दम्भ के गन्दे नाले उसमें मिलकर उतने ही विशाल और पवित्र हो जाते हैं। जिसे एक बार तुमने प्यार किया उसकी अन्तिम अभिलाषा की तुम उपेक्षा नहीं कर सकते।
उसने आइवन का हाथ पकड़ा और सैकड़ो कुतूहल-पूर्ण नेत्रों के सामने उसे लिये हुए अर्थी के पास आया और ताबूत का ऊपरी तख्ता हटाकर हेलेन का शान्त मुख-मंडल उसे दिखा दिया। उस निस्पन्द, निश्चेष्ट, निर्विकार छवि को मृत्यु ने एक दैवी गरिमा-सी प्रदान कर दी थी, मानो स्वर्ग की सारी विभूतियाँ उसका स्वागत कर रही हैं। आइवन की कुटिल आँखों में एक दिव्य ज्योति-सी चमक उठी और वह अपने हृदय के सारे अनुराग और उल्लास को पुष्पों में गूँथ कर उसके गले में डाला था। उसे जान पड़ा, यह सब कुछ जो उसके सामने हो रहा हैं, स्वप्न हैं और एकाएक उसकी आँखें खुल गयी हैं और वह उसी भाँति हेलेन को अपनी छाती से लगाये हुए हैं। उस आत्मानन्द के एक क्षण के लिए क्या वह फिर चौदह साल का कारावास झेलने के लिए तैयार हो जायगा? क्या अब भी उसके जीवन की सबसे सुखद घड़ियाँ वही न थी, जो हेलेन के साथ गुजरी थी और क्या उन घड़ियों के अनुपम आनन्द को वह इन चौदह सालों मे भी भूल सका था? उसने ताबूत के पास बैठकर श्रद्धा से काँपते हुए कंठ से प्रार्थना की-‘ ईश्वर, तू मेरे प्राणों से प्रिय हेलेन को अपनी क्षमा के दामन में ले!‘ और जब वह ताबूत को कन्धे पर लिये चला, तो उसकी आत्मा लज्जित थी अपनी संकीर्णता पर, अपनी उद्विग्नता पर, अपनी नीचता पर और जब ताबूत कब्र में रख दिया, तो वह वहाँ बैठकर न-जाने कब तक रोता रहा। दूसरे दिन रोमनाफ जब फातिहा पढ़ने आया तो देखा, आइवन सिजदे में सिर झुकायें हुए हैं और उसकी आत्मा स्वर्ग को प्रयाण कर चुकी हैं।